फ़ौरन प्रबंध करो
रेंगते चूहों की कतरन
अब
केवल सपनों के अम्बर को ही नहीं भेदती
अब यह बहुत आगे बढ़ गई है,
इसकी कुतर-कुतर
अब बाक़ायदा नुकसान कर रही है।
हाँ! बहुत नुकसान, बंधु!!
फ़ौरन चूहेदानी का प्रबंध करो
या वषैली बूटी का ही,
मारो चूहों को।
हिंसा नाचती हुए नहीं होती,
तो अहिंसा भी पीड़ित नहीं होती।
(०८III११,९९१ )