इति-आदि
कापुरुष गंजे फ़रिश्ते उर्फ़ द्रोण
विश्वविद्यालय
अपणु टकसाल के नंदन
खोटे न खरे — और सिक्के भी नहीं ll१ll
राजनीति शास्त्र में अव्वल
अख़बारी चीथड़े पे चित्र …………..
अखिल भारतीय नेता संघ ……..
चपड़ासी …….. . …… ( चित्र का जुड़वाँ भाई )
दौलतखाना-ए-चपड़ासी ……..
सभ्यता-शून्य कमरा ……
एक दीवार, कलिमा ………
फ्रेम: अख़बारी कटिंग, एवं
प्रमाण-पत्र — अव्वल ………
( दोनों में पासपोर्ट साईज़ फ़ोटो भी ) ……. ll१ll
llएकll ……… llएकll ……… llएकll
llटिक्कll …….. llटिक्कll …….. llधम्मll
थम चुका समय। ……. बेबस मसीहा,
बेबसी ……..
उस पागल मसीहा की सी
जो लटक जाए
शहर के घंटाघर की
जम चुकी सूई से, लेकिन
फिर भी समय न बदला ……..
और
सूई शहतीर और घंटाघर सलीब हो जाए ll१ll
हवा में लटके मसीहा का
अंतिम समय ……..
प्राणदाता के प्राण हरने को तैयार
शरीर एवं प्राण बिछुड़ने वाले अन्धकार ………!!!
सलीब तले —
गंजे फ़िरश्ते
स्वासहीण के कपड़े बांटने में मग्न।
E-lo-i, e-lo-i, la-ma, sa-bach-tha-ni?…….. ll१ll
याद है —- आबाद है !
भूल गया — बर्बाद है !!…….आदि
( ०६ VIII १९,९९१ )